
मुंडेश्वरी धाम
बिहार के कैमूर पर्वत की पवरा पहाड़ी पर बना मां मुंडेश्वरी का मंदिर बहुत ही चमत्कारिक है आश्चर्यजनक बात यह है कि यहां बिना रक्त बहाए ही बकरे की बलि चढ़ जाती है. इसके साथ यह भी कि आप माता की मूर्ति पर अधिक देर तक अपनी दृष्टि टिकाए नहीं रख सकते हैं. इसी मंदिर परिसर में एक पंचमुखी शिवलिंग भी है जो दिन के तीन पहर अपना रंग बदल लेता है. आखिर कैसे होता है ये चमत्कार और क्या है इस मंदिर का रहस्य जाने.

मुंडेश्वरी धाम का इतिहास
बिहार के अति प्राचीन शिव मंदिरों में से एक कैमूर में मुंडेश्वरी धाम है। देवी दुर्गा की पूजा देवी दुर्गेश्वरी के रूप में की जाती है। भगवान शिव इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, पत्थर के शिलालेख, नक्काशी और मूर्तियां गुप्त राजवंश के ऐतिहासिक युग की हैं। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण देवी मुंडेश्वरी की भव्य मूर्ति है। यहां भगवान शिव का मंदिर था और यहां मंडलेश्वर के रूप में उनकी पूजा की जाती थी। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि चतुर्मुख शिवलिंग दिन के अलग-अलग समय में अपना रंग बदलता हुआ दिखाई देता है। यहां सूर्य, विष्णु, गणेश, यमुना आदि जैसे हिंदू देवताओं की कई अन्य मूर्तियां हैं। यह मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है।
मुंडेश्वरी मंदिर इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहीं पर देवी ने चंड और मुंड नामक भयानक राक्षसों का वध किया था। इस मंदिर में पशु बलि दी जाती है लेकिन यहां कोई भी जानवर नहीं मरता। जब यहां बकरा लाया जाता है तो पुजारी मूर्ति को छूने के बाद चावल के कुछ दाने छिड़कता है। बकरी तुरंत कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती है. चावल के दाने एक बार फिर से छिड़कने के बाद बकरी को होश आ जाता है और वह उठ जाती है। ये चमत्कार सिर्फ इसी मंदिर में होता है. स्तम्भों पर उत्कीर्णन है। इस मंदिर की कुछ मूर्तियाँ पटना संग्रहालय में देखी जा सकती हैं। इस मंदिर में आज भी अनुष्ठान किए जाते हैं, हालांकि यह मंदिर सदियों पुराना है।
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मुंडेश्वरी धाम का निर्माण
मुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण 635-636 ई. में हुआ था . पहाड़ों पर मौजूद माता के मंदिर पर पहुंचने के लिए ह लगभग 608 फीट ऊंचे पहाड़ की चढ़ाई करनी पड़ती है. यहां प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 389 ईस्वी के आसपास का है जो इसके प्राचीनतम होने का सबूत है.
यहां बलि की प्रकिया है थोड़ी अलग
इस मंदिर में बलि की प्रकिया थोड़ी अलग है। मुंडेश्वरी मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पशु बलि की सात्विक परंपरा है। यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता।
आंखों के सामने होता है चमत्कार
जब बकरे को माता के सामने लाया जाता है तो पुजारी मूर्ति को स्पर्श कराकर चावल बकरे पर फेंकता है। बकरा उसी क्षण अचेत, मृतप्राय सा हो जाता है। थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तो बकरा उठ खड़ा होता है और इसके बाद ही उसे मुक्त कर दिया जाता है। यह चमत्कार आंखों के सामने जब होता है, तब आप यकीन नहीं कर पाते हैं कि आप 21वीं शताब्दी में हैं।
माता ने यहां किया था मुंड का वध
कहते हैं कि चण्ड-मुण्ड नाम के असुर का वध करने के लिए देवी यहां आई थीं तो चण्ड के विनाश के बाद मुण्ड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था। यहीं पर माता ने मुण्ड का वध किया था। इसलिए यह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी पर बिखरे हुए पत्थर और स्तम्भ को देखने से लगता है कि उनपर श्रीयंत्र, कई सिद्ध यंत्र-मंत्र उत्कीर्ण हैं।
यहां शिवलिंग का बदलता है रंग
मां मुण्डेश्वरी मंदिर में भगवान शिव का एक पंचमुखी शिवलिंग है, जिसके बारे में बताया जाता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर व शाम को अलग-अलग दिखाई देता है। देखते ही देखते कब पंचमुखी शिवलिंग का रंग बदल जाता है, पता भी नहीं चलता।
श्रावण में भक्तों का भीड़
सोमवार को बड़ी संख्या में भक्तों द्वारा शिवलिंग शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है यहां मंदिर के पुजारी द्वारा भगवान भोलेनाथ के पंचमुखी शिवलिंग का सुबह श्रृंगार करके रुद्राभिषेक किया जाता है.

मुंडेश्वरी धाम में क्या सुविधाएं हैं
मंदिर की प्राचीनता एवं माता के प्रति बढ़ती आस्था को देख राज्य सरकार द्वारा भक्तों की सुविधा लिए यहां पर विश्रामालय, रज्जुमार्ग आदि का निर्माण कराया जा रहा है। पहाड़ पर स्थित मंदिर में जाने के लिए एक सड़क का निर्माण कराया गया है, जिस पर छोटे वाहन सीधे मंदिर द्वार तक जा सकते हैं। मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियों का भी उपयोग किया जा सकता है।
मुंडेश्वरी धाम में कैसे पहुंच सकते हैं
बिहार राज्य पर्यटन निगम की बसें प्रतिदिन पटना से पहाड़ी के नीचे बसा गांव रामगढ़ तक जाती हैं। यहां रेल से पहुंचने के लिए पटना या गया से मोहनियां स्टेशन उतरना पड़ता है। मोहनियां से मंदिर तक पहुंचने के लिए टेम्पो, जीप, मिनी बस की सहायता ली जा सकती है।
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