lalu yadav ccelebrates birthday with her daughtr rohini
पटना. बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद आज अपना 76वां जन्मदिन मना रहे हैं. 11 जून 1948 को उनका जन्म बिहार के गोपालगंज में हुआ था. बिहार के एक गरीब परिवार से अपनी जिंदगी की शुरुआत कर राजनीति के शिखर तक पहुंचने और शोहरत की बुलंदियों को छूकर भ्रष्टाचार के दलदल में धंस जाने तक लालू प्रसाद की जिंदगी बेहद रोमांच पैदा करनेवाली है. जिंदगी के 75 वसंत जी चुके लालू यादव देश के उन नेताओं में से हैं जिनके पास विशाल जनाधार रहा है. 90 के देशक में लालू प्रसाद एक ऐसे नेता के रूप में उभरे थे जिनकी एक आह्वाण पर उनके समर्थक सड़क पर उतर जाते थे. आज भी करोड़ों लोग लालू यादव के दीवाने हैं. लालू यादव का जनाधार इतना ही विशाल था कि जब उनको गिरफ्तार करने की बात हुई तो सीबीआई की हिम्मत नहीं हुई. सीबाआई ने इसके लिए सेना की मदद मांगी थी.
“दरअसल 1996-97 में बिहार की सियासत में लालू यादव का जनाधार देश के किसी दूसरे नेता से काफी बड़ा था. बिहार से लेकर दिल्ली तक उनकी पकड़ बेहद मजबूत थी, लेकिन चारा घोटाले में उनका नाम जैसे आया, उनकी साख को गहरा झटका लगा. इसी मामले की सीबीआई को लालू प्रसाद के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई करनी थी. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करना था. सीबीआई को पता था कि ये सबकुछ इतना आसान नहीं है. सीबीआई के सह निदेशक यूएन विश्वास तब चारा घोटाले की जांच कर रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विश्वास ने लालू की गिरफ्तारी के लिए बिहार के मुख्य सचिव से संपर्क भी साधा था, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए. फिर डीजीपी से बातचीत की, तो उन्होंने एक तरीके से पूरे मामले को ही टाल दिया था. दूसरी ओर, लालू यादव के मुख्यमंत्री आवास के अंदर और बाहर हज़ारों की संख्या में उनके समर्थकों का जमावड़ा लगा रहा.”
“सीबीआई के सह निदेशक यूएन विश्वास को इस बात का अंदाजा लग गया था कि चंद ऑफिसर के दम पर लालू यादव जैसे नेता को गिरफ्तार करना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव है. यूएन विश्वास किसी भी हाल में इस गिरफ्तारी को टालने के मूड में नहीं थे. वो किसी भी हालात में लालू यादव को गिरफ्तार करना चाहते थे. उन्होंने दानापुर कैंट में ब्रिगेडियर आरपी नौटियाल से मिलने का समय मांगा. उन्होंने कहा कि सेना को की मदद से लालू यादव को गिरफ़्तार किया जाये. लेकिन, ब्रिगेडियर नौटियाल ने अपने ऊपर के अधिकारियों से बातचीत के बाद यह कहकर अपने हाथ खड़े कर दिये कि सेना का काम मुश्किल के समय में सिविल प्रशासन की मदद करना है ना कि पुलिस के बदले किसी काम में भाग लेना. आखिरकार विश्वास को सेना की मदद नहीं मिली, लेकिन इसी बीच लालू यादव ने सीबीआई कोर्ट में आत्मसमर्पण करने की घोषणा कर दी.”