मांग तन्हाइयां कौड़ियों के दाम पर
लुट रहा था मैं हर एक मुकाम पर
आए भी तो मौत पर आंसू बहाने
इस बार भी तुमने बहुत देर कर दी
शर्त थी यूं इश्क के सिलसिले रहें
कुर्बत में हम में तुम में फासले रहें
मुड़कर रास्तों पर मुझको बुलाने
इस बार भी तुमने बहुत देर कर दी
तेरी मेरी कहानियां गुमनाम सी रहीं
अहद-ए-वफ़ा किसी इल्जाम सी रहीं
फिर वस्ल की रात को झूठा बताने
इस बार भी तुमने बहुत देर कर दी
भीगी पलकों पर अपने आंसू छुपाना
कोई किरदार बनकर फिर मुस्कुराना
आ गए फिर कागज़ी रिश्ता निभाने
इस बार भी तुमने बहुत देर कर दी ।।
