
भारत की आजादी के लिए संघर्षों के कई किस्से आप लोगों ने सुने होंगे. क्योंकि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोही घटनाओ का लंबा इतिहास है. इनमें से कई घटनाएं लोगों को मुंहजबानी याद हैं. मगर कई बड़ी घटनाएं ऐसी भी हैं जो समय के साथ भुला दी गईं. देश की आजादी की लड़ाई में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. कई महिलाएं हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. रानी लक्ष्मीबाई, सावित्रीबाई फुले, कस्तूरबा गांधी, लक्ष्मी सहगल, सरोजिनी नायडू और बेगम हजरत महल ऐसे नाम हैं जिनका इतिहास गौरवशाली है. अब हम आपको बिहार की उन वीरांगनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी वीरता की कहानी पढ़कर आप भी गर्व महसूस करेंगे.
इतिहास के पन्नों में गुमनाम हो गईं ये वीरांगनाएं
भारत में समानता का विमर्श सृष्टि के आरम्भ से ही है क्योंकि एकमात्र भारत ही है जहां पर अर्द्धनारीश्वर की अवधारणा है. एकमात्र भारत ही है जहां पर स्त्री एवं पुरुष को समान समझा जाता है. हां, यह समानता उस समाजवादी समानता से एकदम अलग है जो बाजार के आधार पर समानता का सिद्धांत गढ़ता है. यही कारण है कि स्त्रीवाद की प्रथम लहर, द्वितीय लहर और तृतीय लहर के बीच उपजे पश्चिमी विमर्श के मध्य भारत में स्त्रियों की उपलब्धियां क्या थीं, वह सब दबकर रह जाता है. उनके चेहरे दिखाई ही नहीं देते, जिन्होनें अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया था.
जय प्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी
प्रभावती देवी का विवाह 16 मई 1920 को जय प्रकाश नारायण से हुआ था. जिसके बाद जय प्रकाश ने प्रभावती देवी को चरखा से बुनाई सीखने की सलाह दी. दंपति ने संयुक्त रूप से फैसला किया थी कि जब तक भारत अंग्रेजों से मुक्त नहीं हो जाता, तब तक वे कोई संतान नहीं करेंगे. 1932 में विदेशी सामानों के बहिष्कार के आह्वान के दौरान उन्हें लखनऊ में गिरफ्तार किया गया था. उन्हें गांधी जी और राजेंद्र प्रसाद द्वारा बालिका स्वयंसेवकों को संगठित करने का काम सौंपा गया था. प्रभावती ने गांधीवादी मॉडल पर चरखे या चरखा आंदोलन में महिलाओं को शामिल करने के लिए पटना में महिला चरखा समिति की स्थापना की जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ, तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया और भागलपुर जेल भेज दिया गया. 15 अप्रैल 1973 को उनकी उन्नत कैंसर के कारण मृत्यु हो गई.