
Azadi Ka Amrit Mahotsav: चर्चित रोडा आर्म्स केस में कोलकाता से जिला बदर हुए थे प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका कोलकाता में मानिकतत्ला बम कांड के छह वर्ष बाद 1914 में रोडा आर्म्स कांड हुआ था. जिसमें दुमका के प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका बंदी बना लिये गये. प्रभुदयाल को कोलकाता से जिला बदर कर दिया गया था. हालांकि, प्रभुदयाल इस मामले में बरी हो गये थे.
स्वतंत्रता आंदोलन में संताल परगना के जो शख्स काफी चर्चित रहे. उनमें एक थे प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका. दुमका में जन्में और पले-बढ़े प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका की मां का नाम तख्ती देवी और पिता का नाम रामरिखदास हिम्मतसिंहका था. प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका ने अंग्रेजों हुकूमत की तख्त उलटने के लिए लंबा संघर्ष किया. गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से दो बार बतौर सांसद निर्वाचित प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका का जन्म दुमका में 16 अगस्त, 1889 को हुआ था. पिता रामरिखदास हिम्मतसिंहका राजस्थान के छोटे से गांव सिंहाणा खेतड़ी से घर द्वार छोड़ रोजगार की तलाश में निकले और कोलकाता पहुंच गये.
प्रभुदयाल के पिता रामरिखदास 1854-55 में पैदल की दुमका की ओर चल पड़े
संताल विद्रोह अपने चरम पर था. सिपाही विद्रोह का बिगूल बज चुका था. अंग्रेजों के खिलाफ सिपाही विद्रोह की चिंगारी सुलग रही थी. कोलकाता औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित हो रहा था, लेकिन यहां भी रोजगार नहीं मिला, तो रामरिखदास जी घूम-फिरकर 1854-55 के आसपास पैदल ही दुमका की ओर चल पड़े. यात्रा के पांचवें दिन वे दुमका जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर नोनीहाट में रहनेवाले एक रिश्तेदार के घर पहुंचे. नोनीहाट का इलाका उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने यहां अपना छोटा कारोबार शुरू किया, लेकिन यहां उनका व्यवसाय नहीं जमा. उस समय लोग नोनीहाट से दुमका तक बैलगाड़ी, टमटम से या पैदल ही आना-जाना करते थे.
सामाजिक कार्यों में काफी रुचि लेते थे रामरिखदास
1855 में संताल परगना जिले का निर्माण हो चुका था और दुमका को जिला मुख्यालय बनाया गया था. शहर की आबादी बढ़ रही थी. दुमका व्यवसायिक शहर के रूप में विकसित होने लगा था. 1870 ई के आसपास रामरिखदास हिम्मतसिंहका अपने परिवार के साथ दुमका चले आये और किराने की दुकान खोल ली. रामरिखदास जी अपने व्यवसाय के साथ ही सामाजिक कार्यों में बढ़-चढकर हिस्सा लेने लगे. इस कारण समाज में वे काफी लोकप्रिय थे.