जब पहली बार हार मिली तो बहुत गुस्सा आया था , की मैं हार कैसे गया?
दूसरी हार मिली तो खुद के काबिलियत पे शक हुआ
एक और हार ने मेरे हौसले में दरार पैदा कर दी ।
अगली बार जीतने से ज्यादा हारने का डर सताने लगा ।
जब हारने का सिलसिला चलता गया तो जीतने की चाह खत्म हो गई।
अब जीत मिलेगी भी या नहीं पता नही।
हार का सिलसिला इसलिए भी चलता रहा क्यूंकि मैंने लड़ना नहीं छोड़ा । जिस दिन मैने लड़ना छोड़ दिया मैं सच उसी दिन हरूंगा ।
