
राजा जनक की कुलदेवी भी मानी जाती हैं-
मां चामुंडा को वैष्णवी का स्वरूप माना गया है। इसलिए मंदिर में सिर्फ फल और मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। माता के दर्शन के लिए तीन दिन सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को अहम माना गया है। मान्यता है कि वैसे तो सालों भर मां की कृपा अपने भक्तों पर बरसती है। मंदिर के पुजारी विजय शाही ने बताया कि जितनी मुंह, उतनी बातें सुनने को मिलती है। लेकिन, धार्मिक ग्रंथों में इस देवी स्थान को रामायण काल का बताया गया है। कहा जाता है कि ये राजा जनक की कुलदेवी थीं। मां का स्वरूप पिंडी आकार का है।
क्या है माता से जुड़ी कहानी
पुजारी विजय शाही बताते हैं कि पूर्वजों के अनुसार, एक बार पृथ्वी पर चंड-मुंड नामक दो राक्षस भाइयों ने जमकर उत्पात मचाना शुरू कर दिया था। उसी दौरान दोनों राक्षसों का वध करने के लिए मां ने अवतार लिया था। कहा जाता है कि कटरा में ही दोनों राक्षसों का वध कर मां ने पृथ्वी को बचाया था। उसी के बाद माता का नाम चामुंडा पड़ा। मंदिर के पुजारी कन्हाई मिश्र बताते हैं कि यह मंदिर बागमती और लखनदेई नदी के संगम पर है। यहां हर साल देश के विभिन्न कोनों समेत नेपाल से भी श्रद्धालु आते हैं। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से मांगी गई मुराद मां हमेशा पूरी करती हैं।
सालोंभर नियमित होती है पूजा
प्रतिदिन प्रात:काल 6 बजे एवं सायंकाल 8 बजे चामुंडा माता की आरती होती है जिसमें पुजारियों के अलावा भक्तगण भाग लेते हैं। फिर भोग-राग के बाद दर्शनार्थियों के लिए मंदिर खुल जाता है। दोपहर भोग-राग के बाद 12 से 1 बजे तक देवी के शयन का समय होता है और पट बंद रहता है।
माता का स्वरूप वैष्णवी है इसलिए फल और मिष्ठान्न ही चढ़ाया जाता है। शारदीय नवरात्र के अवसर पर नौ दिवसीय विशेष धार्मिक अनुष्ठान होता है। सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। नए वाहनों की पूजा होती है। दशहरा में अष्टमी तिथि को देवी की विधिवत पूजा होती है जिसमें समस्त ग्रामीण भाग लेते हैं। इस अवसर पर भव्य मेला भी लगता है।
शास्त्रीय आख्यानों के अनुसार चंड-मुंड असुर बंधुओं का संहार देवी ने इसी स्थल पर किया जहां वे विराजमान हैं। तभी से वे चामुंडा कहलाईं। कहते हैं कि इस ऐतिहासिक स्थल पर चंद्रवंशी राजाओं का साम्राज्य था। 13वीं सदी में चंद्रसेन सिंह नामक राजा यहां राज्य करता था और माता चामुंडा की आराधना कुलदेवी के रूप में करता था।
सदियों से जीर्ण-शीर्ण देवालय की जगह 1980 में नैमिषपीठाधीश्वर स्वामी नारदानंद सरस्वती के प्रिय शिष्य डॉ. शौनक ब्रह्मचारी की प्रेरणा व प्रखंड अधिकारी ब्रजनाथ सिंह के प्रयास से जनसहयोग द्वारा भव्य मंदिर का निर्माण हुआ।
जनक की कुलदेवी मां चामुंडा का पिंडी, जम्मू के कटरा जैसा है माता का मंदिर, जानें क्या है मान्यता
मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड में मां चामुंडा का प्रसिद्ध मंदिर है. इस मंदिर के संदर्भ में मान्यता है कि मंदिर में विराजमान मां चामुंडा रामायण काल में माता सीता के पिता राजा जनक की कुलदेवी थीं. मंदिर के पुजारी रमेश झा बताते हैं कि मुजफ्फरपुर के कटरा प्रखंड में स्थित यह मंदिर बेहद ही प्राचीन मंदिर है.
पुजारी श्री आगे बताते हैं कि इस मंदिर में पीपल के वृक्ष के नीचे मां चामुंडा स्वयं प्रकट हुई थी. यह मंदिर कटरा में बेहद ऊंचे स्थान पर त्रेता युग से ही मौजूद है. राजा जनक की कुलदेवी मां चामुंडा का पिंडी स्वरूप आज भी मंदिर में विराजमान है. मान्यता है कि इस मंदिर में विराजमान मां चामुंडा सभी दुखों को हरने वाली है. साथ ही सभी मनोकामना को पूर्ण करती है.
नवरात्रि में आते हैं हजारों भक्त
मंदिर न्यास समिति के सचिव सुरेश प्रसाद साह बताते हैं कि पिछले दो साल से कोरोना के कारण मंदिर का पट बंद था। सिर्फ मंदिर के पुजारी प्रतिदिन सुबह शाम पूजा-अर्चना और आरती करते थे। अब मंदिर आम श्रद्धालुओं के खुल चुका है। नवरात्रि के समय प्रतिदिन हजारों भक्त पूजा करने आते हैं। इसके लिए 200 से अधिक सेवा दल के सदस्य मौजूद रहते हैं। इसके अलावा जिला पुलिस बल के जवान भी भीड़ को नियंत्रित रखते हैं।
जमीन से 40 फीट ऊपर है स्थित
पुजारी का कहना है की मां का पिंडी रूप खुद जमीन से बाहर निकला है। यह जमीन और मेन रोड से करीब 40 फीट ऊपर है। पहले यहां पर सिर्फ पिंडी थी। बाद में धीरे-धीरे मंदिर का भव्य स्वरूप दिया गया। अब यह मंदिर धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीन है, जिसका संचालन मंदिर न्यास समिति द्वारा किया जाता है। वहीं, मंदिर के संबंध में सदियों से ये भी कहानी बताई जाती है कि मुगल वंश के शासक अकबर ने भी यहां पर मां को चुनरी चढ़ाई थी।
ऐतिहासिक मंदिर है चामुंडा स्थान
कटरा प्रखंड मुख्यालय से महज 100 गज की दूरी पर चामुंडा स्थान है। लगभग 80 एकड़ भूमि में फैला यह भूभाग कटरा गढ़ कहलाता है। इसके पश्चिमोत्तर भाग में एक टीले पर मां चामुंडा का भव्य मंदिर है। देवी का स्वरूप पिण्डनुमा है। मंदिर की देखभाल न्यास बोर्ड द्वारा नियुक्त कमेटी करती है। यह मंदिर आस्था का केंद्र है
मिथिला की पावन-भूमि क्यों विश्व वंदित है ?
मिथिला की ज्ञानधारा और विचारधारा न केवल मिथिलावासीयों के लिए बल्कि भारतवासीयों के लिए प्रेरणा का तपःस्थली रहा है । नारी शक्ति और सम्मान की मूल स्थली मिथिला की पावन भूमि के गर्भ से भगवती जानकी सदृश पुत्री का जन्म लेना मिथिलावासीयों के लिए गर्व और सम्मान की बात है । हम मिथिलावासी इस पावन भूमि पर जन्म लेकर गौरव का अनुभव करते हैं । भगवती चामुण्डा की प्राकट्य-स्थली स्थली कटरा मिथिलावासीयों के लिए तीर्थस्थली है । अतः इस स्थली को श्रद्धावत नमन-वंदन-स्तवन करके हम मिथिलावासी सौभाग्यशाली अनुभव करते हैं ।
धार्मिक न्यास करता है संचालन की व्यवस्था
मंदिर का संचालन बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड द्वारा नियुक्त चामुंडा न्यास समिति करती है। इसके अध्यक्ष रघुनाथ चौधरी, सचिव कैलाश बिहारी सिह व कोषाध्यक्ष तारकेश्वर सिह हैं। मंदिर उत्तरोत्तर प्रगति पर है।
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पर्यटन स्थल के रूप में मुजफ्फरपुर का ऐतिहासिक चामुंडा स्थान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार स्टेट टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक कँवल तनुज ने मुजफ्फरपुर ज़िले के डीएम प्रणव कुमार को कटरा स्थित चामुंडा मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विभाग द्वारा विकसित करने हेतु पत्र भेजा है।
प्रमुख बिंदु
- प्रबंध निदेशक कँवल तनुज ने बताया कि पर्यटकीय संरचनाओं के निर्माण को लेकर इसकी ज़मीन पर्यटन विभाग को हस्तांतरित की जाएगी। इसमें ज़मीन हस्तांतरण के अलावा अतिक्रमण, स्वामित्व आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया है।
- विदित है कि देश के ऐतिहासिक महत्त्व के धार्मिक एवं तीर्थस्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना में देश के कुल 70 तीर्थस्थलों को शामिल किया गया है।
- इनमें बिहार के चार मंदिरों में चामुंडा मंदिर भी शामिल है। केंद्र सरकार की तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्धन ड्राइव (प्रसाद) योजना से इन्हें विकसित किया जाना है।
- पर्यटन बढ़ाने के लिये केंद्र सरकार ने प्रसाद योजना शुरू की है। इससे रोज़गार सृजन होने के साथ क्षेत्र का आर्थिक विकास भी होगा।
- कटरा प्रखंड मुख्यालय से महज 100 गज की दूरी पर चामुंडा स्थान है। लगभग 80 एकड़ भूमि में फैला यह भूभाग कटरा गढ़ कहलाता है। इसके पश्चिमोत्तर भाग में एक टीले पर माँ चामुंडा का भव्य मंदिर है। देवी का स्वरूप पिंडनुमा है। मंदिर की देखभाल न्यास बोर्ड द्वारा नियुत्त कमेटी करती है।
आवागमन की व्यवस्था
मुजफ्फरपुर-दरभंगा मार्ग में 10 बें किमी पर मझौली से कटरा तक पक्की सड़क है जो सही स्थिति में है। मंदिर पहुंचने के लिए ऑटो तथा बस सेवा लगातार उपलब्ध है। वर्तमान में कटरा प्रखंड मुख्यालय से मंदिर परिसर के बीच सड़क की दशा खराब है। बरसात के जलजमाव के कारण यात्रियों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
जब भी मौका मिले आप सब कम से कम एक बार जरूर आयें।यह एक प्रसिद्ध एवं जाग्रत शक्तिपीठ है जहां माँ के साक्षात संरक्षण में साधक की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती है ।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो।
कल्याण दायिनी शिवा हो।
सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली हो।
शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो।
हे नारायणी, तुम्हें नमस्कार है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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