
विष्णुपद मंदिर गया
विष्णुपद मंदिर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर फल्गु नदी, गया, बिहार के साथ स्थित है। यह भगवान विष्णु के पदचिह्न द्वारा चिह्नित किया गया है, जिसे धर्मशीला के रूप में जाना जाता है, जो बेसाल्ट के एक खंड में उकसाया गया था।

विष्णुपद मंदिर का इतिहास
मंदिर में कई युगों से भगवान विष्णु के चरणचिह्न अंकित हैं और पौराणिक काल से ही यहाँ तर्पण एवं पिंडदान का कार्य होता आ रहा है। लेकिन मंदिर का वर्तमान स्वरूप इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा दिया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी पर तीन ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें पिंडदान के लिए सबसे उत्तम माना गया है। ये हैं: बद्रीनाथ का ब्रह्मकपाल क्षेत्र, हरिद्वार का नारायणी शिला क्षेत्र और बिहार का गया क्षेत्र। तीनों स्थान ही पितरों की मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण स्थान हैं।
लेकिन इनमें गया क्षेत्र का विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ स्थित हैं कुछ ऐसे दिव्य स्थान जहाँ पिंडदान करने से पूर्वजों को साक्षात भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उन्हें मुक्ति मिलती है। इसी गया क्षेत्र में स्थित है अतिप्राचीन विष्णुपद मंदिर जो सनातन के अनुयायियों में सबसे पवित्र माना गया है। इस मंदिर में स्थित हैं भगवान विष्णु के चरणचिह्न जिनके स्पर्श मात्र से ही मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है।
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भगवान विष्णु का दाहिने पैर का चरण है 18 इंच लंबा
गया के पत्थलकट्टी के पत्थर को तराशकर लगभग 100 फीट ऊंचा और 58 फीट चौड़ा राजमंडप बनाया गया जो सबों को आकर्षित करता है। इसे जयपुर के कुशल कारीगरों द्वारा बनाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में एक शिला पर भगवान विष्णु का चरण है। 18 इंच लंबा यह चरण भगवान विष्णु के दाहिने पद का है। जो अष्टपहल के बीच में चिह्नित है जिस पर हर सनातनी शीश नवाकर नमन करना अहोभाग्य समझते हैं।
20 वर्षों में बनकर तैयार हुआ पूरा मंदिर
इसके निर्माण का काल 1766-1787 ई. बताते हैं। यानी पूरा मंदिर 20 वर्षों में बनकर तैयार हुआ। चीनी यात्री व्हेन सांग ने 629-634 में ई. में गया को प्रसिद्ध हिन्दू शहर के रूप में बताया था। उसने बताया कि यहां छोटी सी जनसंख्या थी। ब्राह्मणों का एक हजार परिवार था। बुकानन ने भी गया को ऐसे 45 तीर्थस्थलों की सूची दी।
कैसे आया भगवान विष्णु का पग
विश्व में विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान विष्णु के चरण का साक्षात दर्शन कर सकते हैं। विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु का चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर है। राक्षस गयासुर को स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से माता धर्मवत्ता शिला को लाया गया था, जिसे गयासुर पर रख भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया। इसके बाद शिला पर भगवान के चरण चिह्न है।

सोना कसने वाले कसौटी से विष्णुपद मंदिर का निर्माण हुआ
वर्तमान में स्थित इस मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने कराया था. विष्णुपद मंदिर का निर्माण सोने को कसने वाले पत्थर कसौटी से बनाया गया है, जिसे जिले के अतरी प्रखंड में स्थित पत्थरकट्टी से लाया गया था. इस मंदिर की ऊंचाई करीब सौ फीट है. मंदिर के सभा में मंडप कुल 44 पिलर हैं. इस मंदिर की भव्यता और वैभव देखते ही बनती है.
अरण्य वन बना सीताकुंड
विष्णुपद मंदिर के ठीक सामने फल्गु नदी के पूर्वी तट पर स्थित है सीताकुंड। यहां स्वयं माता सीता ने महाराज दशरथ का पिंडदान किया था। प्रबंधकारिणी समिति के सचिव गजाधरलाल पाठक ने बताया कि पौराणिक काल में यह स्थल अरण्य वन जंगल के नाम से प्रसिद्ध था। भगवान श्रीराम, माता सीता के साथ महाराज दशरथ का पिंडदान करने आए थे, जहां माता सीता ने महाराज दशरथ को बालू फल्गु जल से पिंड अर्पित किया था, जिसके बाद से यहां बालू से बने पिंड देने का महत्व है।
विष्णुपद मंदिर कैसे पहुँचे
गया में अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा स्थित है। चूँकि गया एक बौद्ध क्षेत्र भी है इसलिए यहाँ श्रीलंका, थाईलैंड, सिंगापुर और भूटान जैसे देशों से भी फ्लाइट आती रहती हैं। इसके अलावा बिहार का दूसरा सबसे व्यस्त हवाईअड्डा गया, दिल्ली, वाराणसी और कोलकाता जैसे शहरों से भी जुड़ा हुआ है।
गया जंक्शन दिल्ली और हावड़ा रेललाइन पर स्थित है। यहाँ से कई बड़े शहरों के लिए ट्रेनें चलती हैं। यहाँ तक कि बिहार और झारखंड में गया ही एकमात्र उन 66 रेलवे स्टेशनों में शामिल है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाए जाने की योजना है। इसके अलावा सड़क मार्ग से भी गया, बिहार और देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है। कोलकाता से दिल्ली तक जाने वाली ग्रैंड ट्रंक रोड गया से 30 किमी दूर स्थित दोभी से गुजरती है। गया से पटना 105 किमी, वाराणसी 252 किमी और कोलकाता 495 किमी की दूरी पर स्थित है।
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