
transgender life struggle
किन्नरों के रिवाजों से जुड़े कई मिथक होते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ऐसे होते हैं जो उनकी जिंदगी का नया आयाम बताते हैं। जानिए क्या है उनका चेला रिवाज।

मयूरी ने बचपन में सुना था कि अगर वह लड़कियों जैसी हरकतें करेंगी, तो हिजड़े उन्हें लेकर चले जाएंगे। मयूरी ने बचपन का अधिकतर वक्त डर और असमंजस के बीच काटा है। छठवीं कक्षा में अपने ही दोस्तों से यौन शोषण झेलने के बाद, मयूरी को टीचर से लेकर मां तक सभी ने यही हिदायत दी थी कि उन्हें लड़कों जैसा ही व्यवहार करना चाहिए। लोग उन्हें कहते थे कि अगर वह अपने हाव-भाव नहीं सुधारेंगी, तो उन्हें भी यही सब करना होगा। गली-गली जाकर भीख मांगनी होगी।
मयूरी अरोड़ा एक ट्रांसजेंडर हैं और वह अब दीपशिखा एनजीओ के साथ मिलकर एक बेहतर जिंदगी जी रही हैं। वह लोगों को एजुकेट कर रही हैं और अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश कर रही हैं। Uprising bihar से खास बातचीत में मयूरी ने अपनी जिंदगी से जुड़े कई पहलू शेयर किए। उन्होंने किन्नरों के लिए अहम माने जाने वाले चेला रिवाज की भी जानकारी दी। मयूरी का कहना है कि लोगों को ट्रांसजेंडर और थर्ड जेंडर के बीच का अंतर नहीं समझ आता। रिवाज के बारे में बताते हुए मयूरी कहती हैं, “लोगों के लिए तो सभी हिजड़े हैं।”
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क्या है किन्नरों का गुरु-चेला रिवाज?
यह मिथक भारतीय समाज में बहुत फैला है कि हिजड़े या किन्नर लड़कों को उठाकर ले जाते हैं और उसके बाद उन्हें अपनी टोली में शामिल कर लेते हैं। मयूरी कहती हैं कि यह सब बकवास है। उनके मुताबिक, “मैंने भी बचपन में यह सुना था कि लड़कों के साथ ऐसा होता है। अगर कोई लड़का लड़कियों जैसा व्यवहार करता है, तो किन्नर उसे जबरदस्ती उठाकर ले जाते हैं, पर ऐसा नहीं है। ऐसा नहीं है कि कोई आ जाए और जबरदस्ती चेला बना ले। चेला बनाने के पहले पूछा जाता है कि क्या आपको बनना है या नहीं?

मयूरी के अनुसार किन्नरों के पास परिवार नहीं होते। अधिकतर के पास घर जाने का ठिकाना नहीं होता ऐसे में गुरु ही उनके माता-पिता और घर बन जाते हैं। चेला एक रिवाज है जिसे आप गुरु दीक्षा की तरह ही समझें। किन्नर और हिजड़े एक गुरु के पास जाकर उनके चेले बनते हैं। मान लीजिए कोई एक गुरु है, तो उसके चेले उसके बच्चों की तरह हो सकते हैं, उसके भाई-बहन की तरह हो सकते हैं, भांजा-भांजी और ऐसे ही कई रिश्ते गुरु और चेले के बीच बना लिए जाते हैं।
गुरु-चेले के रिश्तों को परिवार की शक्ल दे दी जाती है।
मैंने खुद चेला किया हुआ है….
मयूरी ने आगे बताते हुए कहा, “मैंने भी चेला किया हुआ है, लेकिन मैं कभी टोली में शामिल नहीं हुई। मुझसे पूछा गया था, लेकिन मुझे नहीं होना था। आपकी मर्जी का ध्यान रखा जाता है। ऐसा नहीं है कि अगर आप चेला बन गए, तो आपको सिग्नल पर भीख मांगने या शादियों में नाचने ही जाना होगा। थर्ड जेंडर और ट्रांसजेंडर में फर्क होता है। थर्ड जेंडर अधिकतर टोली में शामिल होते हैं। हालांकि, उनमें से भी कई अलग जिंदगी जीते हैं। गुरु आपको ताली की विद्या भी सिखाता है।”

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मयूरी से भी पूछा जाता था कि उन्हें कब टोली से जुड़ना है, लेकिन मयूरी ने कभी हां नहीं की। उन्हें कभी टोली में नहीं जाना था।
मयूरी का कहना है कि उन्होंने भी ताली बजाने की कला सीखी है। उनके अनुसार, “चेला करने के बाद भी आप अलग हो सकते हैं, लेकिन लोग चाहते नहीं कि वो अपने परिवार से अलग हों। हर गुरु के कुछ नियम होते हैं और उनका पालन करना चेलों का धर्म है।”
बाकियों के लिए खून के रिश्ते होते हैं, लेकिन चेलों के लिए गुरु ही उनका सब कुछ होता है। ऐसा भी हो सकता है कि चेले शुरुआत में निचले स्थान पर हों, लेकिन धीरे-धीरे उनका रिश्ता गुरु से और ज्यादा बेहतर हो जाए। डेरे में उनका ओहदा बढ़ जाए। हर गुरु चाहता है कि उनका चेला उनकी तरह ही जिए, लेकिन अपने जीने के तरीके को कभी चेलों पर थोपता नहीं है।
यह सारी जानकारी हमें मयूरी ने दी है। मयूरी से हुई बातचीत में किन्नरों से जुड़ी और भी कई बातें सामने आईं जिनके बारे में हम आपको आने वाले समय में बताएंगे।
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