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नवरात्रि का त्योहार देवी दुर्गा के नौ दिव्य रूपों को समर्पित 9 रातें मनाया जाता है। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक एक हिंदू त्योहार। देवी दुर्गा दिव्य शक्तियों का प्रतीक हैं जिन्हें दैवीय शक्ति (स्त्री ऊर्जा) के रूप में जाना जाता है जिसका उपयोग बुराई और दुष्टता की नकारात्मक शक्तियों के खिलाफ किया जाता है। कुछ प्रसिद्ध आरतियाँ जिन्हें आप इस नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजा करते समय गा सकते हैं।
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जय अम्बे गौरी
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिना ध्यावता,हरि ब्रह्मा शिवरि॥
जय अम्बे गौरी
मंगा सिन्दूरा विराजता,टिको मृगमदा को।
उज्जवला से दोउ नैना,चन्द्रवदन नीको॥
जय अम्बे गौरी
कनक समाना कालेवारा,रक्तंबर राजाई।
रक्तपुष्पा गाला माला,कंठना पारा सजाई॥
जय अम्बे गौरी
केहरि वाहन राजता, खड्ग खप्परधारी।
सुरा-नर-मुनि-जन सेवता, तिनके दुःखहरि॥
जय अम्बे गौरी
कनाना कुंडला शोभिता, नासाग्रे मोती।
कोटिका चंद्र दिवाकर, सम राजता ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाटी।
धूम्र विलोचना नैना, निशिदिना मदमती॥
जय अम्बे गौरी
चंदा-मुंडा संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभा दोउ मरे, सुर भयहिना करे॥
जय अम्बे गौरी
ब्रह्माणी रुद्राणीतुमा कमला रानी।
अगम-निगम-बखानि, तुमा शिव पतरनि॥
जय अम्बे गौरी
चौसठ योगिनी मंगला गावता, नृत्य कराता भैरुं।
बाजता ताल मृदंगा, अरु बाजता डमरू॥
जय अम्बे गौरी
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भारत।
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति कराता॥
जय अम्बे गौरी
भुज चर अति शोभिता, वर-मुद्रा धारी।
मनवंचिता फला पावता, सेवता नर-नारी॥
जय अम्बे गौरी
कंचना थाला विराजता,अगरा कपूरा बटी।
श्रीमालकेतु में राजता,कोटि रत्न ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नारा गावै।
कहटा शिवानंद स्वामी, सुखा संपति पावई॥
जय अम्बे गौरी
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अम्बे तू है जगदम्बे काली
अम्बे तू है जगदम्बे काली,जय दुर्गे खप्परा वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, हे मैया हमा सबा उतारे तेरी आरती।
हे मैया हमा सबा उतारे तेरी आरती॥
तेरे भक्त जानो पारा माता भीरा पड़ी है भारी।
दानवा डाला पारा टूटा पड़ो माकराके सिंह सवारी॥
सौ-सौ सिहों से बालाशाली, है अष्ट भुजाओं वाली,
दुश्मनों को तू ही ललकारती।
हे मैया हमा सबा उतारे तेरी आरती॥
माँ-बेटे का है इस जगह में बड़ा हाय निर्मला नाता।
पूत-कपूता सुने हैपरा न माता सुनि कुमाता॥
सबा पे करुणा दर्शन वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुःखियों के दुःख निवारति।
हे मैया हमा सबा उतारे तेरी आरती॥
नहिं मंगते धन और दौलत, न चांदी न सोना।
हमा तो मांगे तेरे चरणों में छोटा सा कोना॥
सबकी बिगाडी बनाने वाली,लाजा बचाने वाली,
सातियों के सता को संवरति।
हे मैया हमा सबा उतारे तेरी आरती॥
चरण शरण में खड़े तुम्हारी, ले पूजा की थाली।
वरदा हस्त सारा पारा राखा दो संकट हरणे वाली॥
माँ भारा दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओं वाली,
भक्तों के करजा तू ही सरती।
हे मैया हमा सबा उतारे तेरी आरती॥

ब्रह्माचारिणी देवी की आरती
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।

आरती करने का उद्देश्य विनम्रता और कृतज्ञता की भावना से देवताओं के सामने जलती हुई बातियां लहराना है, जिसमें वफादार अनुयायी भगवान के दिव्य रूप में डूब जाते हैं। यह पाँच तत्वों का प्रतीक है: अंतरिक्ष (आकाश) पवन (वायु)।
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