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वो माँ है जो कभी हार नहीं मानती ……..

आज मन हुआ कुछ अल्फाज़ लिखने का

मेरी माँ है जो कभी नहीं हारती ,

मेरे टूटने भर से वो बिखर जाती है ,

मेरे अंशु पोंछ ,मुझे हौसला दे जाती है,

अपनी आँखों में नमी भर ,खुद आधी रात मेरे सिरहाने वो पाती है !

माना मैं नादान हूँ ,मगर रही नही वो नादानियाँ ,

कौन कैसा है यह समझ आती है मुझे चालाकियां ,

माँ…यूँ तो करती है सबकुछ मेरे आँखों से तू ओझल ,

मगर मुझे समझ आती है तेरी परेसानियाँ………..

यूँ तो कर दे तेरे जिस्म को कोई छल्ली ,

रत्ती भर फर्क नहीं परता है ,

मेरी तरफ कोई आँख तो उठा ले ,

तेरी जान चली जाती है ,

तू है सबसे अलग हर बार मुझे बतलाती है!!

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