मेरी माँ है जो कभी नहीं हारती ,
मेरे टूटने भर से वो बिखर जाती है ,
मेरे अंशु पोंछ ,मुझे हौसला दे जाती है,
अपनी आँखों में नमी भर ,खुद आधी रात मेरे सिरहाने वो पाती है !
माना मैं नादान हूँ ,मगर रही नही वो नादानियाँ ,
कौन कैसा है यह समझ आती है मुझे चालाकियां ,
माँ…यूँ तो करती है सबकुछ मेरे आँखों से तू ओझल ,
मगर मुझे समझ आती है तेरी परेसानियाँ………..
यूँ तो कर दे तेरे जिस्म को कोई छल्ली ,
रत्ती भर फर्क नहीं परता है ,
मेरी तरफ कोई आँख तो उठा ले ,
तेरी जान चली जाती है ,
तू है सबसे अलग हर बार मुझे बतलाती है!!