द्वारकाधीश मंदिर छपरा, सारण, बिहार में स्थित एक हिंदू मंदिर है. यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है और यह 8.50 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है. मंदिर का निर्माण 14 साल में गुजरात के कारीगरों द्वारा किया गया है.

नैनी गाँव, जो केवल 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, छपरा शहर से, अब श्रद्धालुओं के आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है।इस मंदिर का निर्माण गुजरात के द्वारिकाधाम की प्रेरणा से किया गया है और यहाँ राधाकृष्ण के साथ शिव पार्वती, दुर्गा, गणेश, हनुमान आदि की मूर्तियाँ स्थापित की गयी है |
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जानिए कब और किसके द्वारा निर्माण करवाया गया छपरा के नैनी में स्थित द्वारकाधीश मंदिर?…बिहार में द्वारिका के तर्ज पर बना पहला मंदिर… पूरे उत्तर बिहार क्षेत्र में भी अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है
2005 से यह मंदिर की नींवें रखी जा रही थीं, जिसका पूरा निर्माण अब सम्पन्न हुआ है. इस मंदिर की शृंगारणा गुजरात के सिम्प्लेक्स में स्थित जेनरल मैनेजर राजीव सिंह और उनकी पत्नी रितुरानी सिंह द्वारा श्रमसंग्रह के बाद पूरे समुदाय के लिए आकर्षक और प्रासंगिक बनाया गया है. यह मंदिर निर्माण के समय से ही मनोवृत्ति में रहा है और उसकी विशालता खुद रास्ते से गुजरने वालों की दृष्टि को आकर्षित करती है।

मंदिर में राजस्थान और गुजरात के संगमरमर का प्रयोग किया गया है, जिससे इसकी शोभा और भव्यता में वृद्धि हुई है। गुम्बद पर लगे ध्वज के साथ, इस मंदिर की ऊंचाई लगभग चालीस फीट है। सारण के नैनी में स्थित यह मंदिर सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर बिहार क्षेत्र में भी अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर के निर्माण में गुजरात से आए कारीगर नवल गुज्जर और उनकी टीम ने अपनी मेहनत और कुशलता का प्रदर्शन किया है, जिससे यह मंदिर आकर्षक और श्रेष्ठ बना है।
कैसे बना यह भव्य मंदिर बिना लोहे के,केवल किल और गोंद का हुआ इस्तेमाल ,प्राचीन तकनीक से बना नैनी का द्वारकाधीश मंदिर…..Gujarat के Dwarka मंदिर जैसा द्वारकाधीश मंदिर अब बिहार में |
गुजरात के अनोखे मंदिर का निर्माण विशेष प्रकार के लाल पत्थर (धागगरा) से किया गया है।इस निर्माण कार्य में ईंट, सीमेंट, सरिया और बालू जैसे सामग्री का किसी भी प्रकार का उपयोग नहीं किया गया है, बल्कि खास केमिल और क्लिप कट पद्धतियों का प्रयोग किया गया है।
पत्थरों को जोड़ने के लिए खास केमिल का उपयोग किया गया है और यहाँ तक कि पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए क्लिप कट पद्धति का भी उपयोग किया गया है। विशेष दृष्टिकोण से तैयार की गई जगहों पर तांबे और पीतल के क्लिप का उपयोग करके पत्थरों को संरचित किया गया है। मंदिर के निर्माण में लोहे का किसी भी छोटे उपादान का इस्तेमाल नहीं हुआ है, बल्कि लकड़ी की कील और गोंद का प्रयोग दरवाजों और चौखटों के निर्माण में किया गया है।

इस प्रकार, पूरे मंदिर का निर्माण अनौपचारिक और अद्वितीय तकनीकों से किया गया है, जिससे यह एक आदर्श मिसाल बन चुका है।
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यदि आप छपरा यात्रा कर रहे हैं, तो द्वारकाधीश मंदिर अवश्य देखें. यह मंदिर आपको एक अद्भुत धार्मिक अनुभव प्रदान करेगा |
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