पावापुरी में स्थित “जल मंदिर” राजगीर और बोधगया के समीप पावापुरी भारत के बिहार प्रान्त के नालंदा जिले मे स्थित एक शहर है। यह जैन धर्म के मतावलंबियो के लिये एक अत्यंत पवित्र शहर है क्यूंकि माना जाता है कि भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। यहाँ के जलमंदिर की शोभा देखते ही बनती है।

पावापुरी जलमंदिर सभी मंदिरों से बिलकुल अलग है क्यों की यह मंदिर पूरी तरह से पानी में बनाहुआ मंदिर है और साथ ही इस मंदिर में चारो तरफ़ कमल के फूल दिखाई देते है। यह मंदिर बिहार के नालंदा जिले में स्थित है।
पावापुरी जलमंदिर का इतिहास
लगभग 2600 वर्ष पूर्व प्राचीन काल मे पावापुरी मगध साम्राज्य का हिस्सा था। जिसे मध्यम वापा या अपापपुरी कहा जाता था। जिनप्रभा सूरी ने अपने ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प रूप में इसका प्राचीन नाम अपापा बताया है। मगध शासक बिम्बिसार का पुत्र आजातशत्रु जैन धर्म के अनुयायी थे और भगवान महावीर का समकालीन था। आजातशत्रु के शासनकाल में राजकिय औषधालया पावापुरी में निर्माण कराया गया था। जब भगवान महावीर पावापुरी आए थे।
भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। जल मंदिर के नाम से ही पता चलता है कि मंदिर खिले कमलों में भरे जलाशयों के बीच में स्थित होगा। यह मंदिर जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है। इस खूबसूरत मंदिर का मुख्य पूजा स्थल भगवान महावीर की एक प्राचीन चरण पादुका है। यह उस स्थान को इंगित करता है जहां भगवान महावीर के पार्थीव अवशेषों को दफ़नाया गया था।
मंदिर का निर्माण विमान के आकार में किया गया है और जलाशय के किनारों से मंदिर तक लगभग 600 फूट लम्बा पत्थर का पुल बनाया गया है। अनुश्रुतियों के अनुसार भगवान महावीर के अंतिम संस्कार मे भाग लेनेवाले लोगों के द्वारा बड़ी गढ़ा बन गया जो वर्तमान जलशय में तब्दील हो गया।
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जल मंदिर का निर्माण कब हुआ था
महावीर ने 528 ईसा पूर्व में पावापुरी में निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। यह मंदिर लाल रंग के कमल के फूलों से भरे एक तालाब के भीतर बनाया गया है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महावीर के बड़े भाई राजा नंदीवर्धन ने कराया था।
जल मंदिर की बनावट
जलमंदिर भगवान महावीर की निर्वाण स्थली है। 84 बीघे के तालाब के बीच सफेद संगमरमर का मंदिर ताजमहल की तरह दिखाई देता है। यह सफेद संगमरमर से निर्मित एक गोलाकार मंदिर है जिसमें मधुमक्खी के छ्त्ते के आकार का पवित्र स्थल है जिसके भिर्श पर भगवान महावीर के चरणचिन्ह खुदे हैं। यह वही स्थान है जहां भगवान महावीर ने अपने धर्म का अंतिम उपदेश दिया था। यह भी मान्यता है की इंद्रभूति गौतम का भगवान महावीर से यहीं मिलाप हुआ था जिस से प्रभावित होकर महावीर के पास दीक्षा ली और प्रथम गणधर बने।
जल मंदिर में कौन कौन से महोत्सव मनाए जाते है
कार्तिक अमावस्या की मध्य रात्रि में भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था। इसी उपलक्ष्य में हर साल दीपोत्सव पर यहां जैन श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। दिवाली की रात में हिलता है महावीर की चरण पादुका का छत्र : निर्वाण भूमि में जैन श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ यहां एक विशेष मान्यता के कारण जुटती है।
भगवान महावीर की अंतिम संस्कार भूमि जलमंदिर, जहां पर अभी भगवान की चरण पादुका उनके दो शिष्यों गौतम स्वामी और सुधर्मा स्वामी के साथ अवस्थित है वहां भगवान महावीर की चरण पादुका का छत्र दिवाली की मध्य रात्रि को हिलता-डुलता है और इस दृश्य को जो भी जैन श्रद्धालु देखते हैं उनका जीवन धन्य हो जाता है। इस दृश्य को ही देखने के लिए हजारों श्रद्धालु यहां रात भर टकटकी लगाये रहते हैं।

जल मंदिर घूमने कब जाये
बिहार में काफी सर्दी और गर्मी पड़ती है। यहां आने के लिए सबसे अच्छा समय फरवरी से मार्च और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है।
जल मंदिर कैसे पहुंचे
पावापुरी बिहार के राजधानी पटना से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है। आप यहां रेल या बस-टैक्सी से आ सकते हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन पावापुरी है। लेकिन यह काफी छोटा स्टेशन है। काफी अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आने के बाद भी यहां काफी कम सुविधा उपलब्ध है। बड़ा स्टेशन राजगीर यहां से करीब 38 किलोमीटर पर है। पावापुरी में रहने के लिए कई धर्मशालाएं हैं।
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