
थावे मंदिर
थावे मंदिर भारत के बिहार राज्य के गोपालगंज जिले के थावे में स्थित माँ थावेवाली का मंदिर है। यह गोपालगंज-सीवान राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोपालगंज शहर से 6 किमी दूरी पर स्थित है। जहाँ मसरख-थावे खंड और सीवान-गोरखपुर लूप-लाइन के उत्तरपूर्वी रेलवे का एक जंक्शन स्टेशन “थावे” है।

थावे मंदिर का निर्माण
हथुआ के राजा युवराज शाही बहादुर ने वर्ष 1714 में थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना उस समय की जब वे चंपारण के जमींदार काबुल मोहम्मद बड़हरिया से दसवीं बार लड़ाई हारने के बाद फौज सहित हथुआ वापस लौट रहे थे। इसी दौरान थावे जंगल मे एक विशाल वृक्ष के नीचे पड़ाव डाल कर आराम करने के समय उन्हें अचानक स्वप्न में मां दुर्गा दिखीं।
स्वप्न में आये तथ्यों के अनुरूप राजा ने काबुल मोहम्मद बड़हरिया पर आक्रमण कर विजय हासिल की और कल्याण पुर, हुसेपुर, सेलारी, भेलारी, तुरकहा और भुरकाहा को अपने राज के अधीन कर लिया। विजय हासिल करने के बाद उस वृक्ष के चार कदम उत्तर दिशा में राजा ने खुदाई कराई, जहां दस फुट नीचे वन दुर्गा की प्रतिमा मिली और वहीं मंदिर की स्थापना की गई . थावे मंदिर का निर्माण विशेष मान्यताओं और धार्मिक आस्था के साथ किया गया था। यहां निर्माण की गई वास्तुकला और विशेषताएं इसे एक अद्वितीय और सुंदर स्थल बनाती हैं।
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थावे मंदिर का इतिहास
थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना की कहानी काफी रोचक है। चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को मां दुर्गा का बड़ा भक्त मानते थे, तभी अचानक उस राजा के राज्य में अकाल पड़ गया। उसी दौरान थावे में माता रानी का एक भक्त रहषु था। रहषु के द्वारा पटेर को बाघ से दौनी करने पर चावल निकलने लगा। यही वजह थी कि वहां के लोगों को खाने के लिए अनाज मिलने लगा। यह बात राजा तक पहुंची लेकिन राजा को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। राजा रहषु के विरोध में हो गया और उसे ढोंगी कहने लगा और उसने रहषु से कहा कि मां को यहां बुलाओ।
इस पर रहषु ने राजा से कहा कि यदि मां यहां आईं तो राज्य को बर्बाद कर देंगी लेकिन राजा नहीं माना। रहषु भगत के आह्वान पर देवी मां कामाख्या से चलकर पटना और सारण के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंची .मां के प्रकट होते ही रहशु भगत का सिर फट गया और मां भवानी का हाथ सामने प्रकट हुआ. मां के प्रकटट होने पर रहशु भगत को जहां मोक्ष की प्राप्ति हुई. वहीं मां के प्रकाश से घमंडी राजा मनन सिंह का सबकुछ खत्म हो गया.

किन नामों से जानी जाती है माँ थावेवाली
मां थावेवाली को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. ऐसे तो साल भर यहा मां के भक्त आते हैं, परंतु शारदीय नवरात्र और चैत्र नवारात्र के समय यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है। यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते है.
थावे मंदिर के दर्शन करने के उत्तम दिन
सप्ताह में दो दिन, सोमवार और शुक्रवार, माँ को प्रसन्न करने के लिए पूजा करने के लिए खास माना जाता है. इन दिनों भक्त अन्य दिनों की तुलना में बड़ी संख्या में माँ की पूजा करते हैं. “चैत्र” (मार्च) और “अश्विन” (अक्टूबर) के माह में “नवरात्र” के अवसर पर साल में दो बार विशेष मेले का आयोजन किया जाता है.
नवरात्र के सप्तमी को मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मंदिर में भक्त भारी संख्या में पहुंचते है. चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में एक बड़ा मेला प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है.
थावे मंदिर कैसे पहुंचे
बाय एयर – यहाँ का नजदीकी हवाई अड्डा सबेया हवाई अड्डा है। यहाँ पहुंचने के बाद सड़क मार्ग द्वारा मंदिर जाया जा सकता है।
ट्रेन द्वारा – थावे मंदिर के पास ही थावे जंक्शन है जो कि सिवान – गोरखपुर मार्ग का महत्वपूर्ण स्टेशन है।
सड़क के द्वारा – जिला मुख्यालय के अरार मोड़ से सीधी सड़क थावे मंदिर तक गयी हुई है। सिवान जिला के रास्ते से भी मंदिर जाया जा सकता है।
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