
क्या आपने कभी सोचा है कि कोई पर्व भी आजादी के लड़ाई लड़ सकती है।
बात 1893 ईo की है, हमारे भारत देश के वीर क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। वीर क्रांतिकारी तिलक अंग्रेजो के ख़िलाफ़ सिर्फ आजादी की लड़ाई नहीं लड़ रहे थे बल्कि एक सेना भी तैयार कर रहे थे। पर दिक्कत आ रही थी कि कोई मंच नहीं मिल रहा था उनको की वो अपने विचारों को नवयुवकों के सामने रख सके।

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।
महान क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक
बाल गंगाधर तिलक ना सिर्फ एक क्रांतिकारी थे बल्कि उनके पास क्षमता थी कि वो अपने वार्ताओं से जनमानस को आजादी की लड़ाई से जोड़ सकते थे। अगर आप उनका भाषण पढ़ेंगे तो आज भी आपको आजादी की लड़ाई से जुड़ने का मेहसूस होगा।

मानव स्वभाव ही ऐसा है कि हम बिना उत्सवों के नहीं रह सकते, उत्सवप्रिय होना मानव स्वभाव है। हमारे त्यौहार होने ही चाहिए।
बाल गंगाधर तिलक
सन 1893 मे बाल गंगाधर तिलक ने पुणे मे सार्वजानिक गणेशोत्सव मनाने का शुरुआत की ताकि इस पर्व के बहाने वो जनमानस से जुड़ सके।
और हुआ भी ऐसा ही, उनके साथ चलने वाले लोग और युवा वर्ग गणेशोत्सव के दरम्यान सड़कों पर घूम घूम कर अंग्रेज विरोधी गीत गाती और स्कूल के बच्चे पर्चे बाटते।

डर गयी थी अँग्रेजी हुकूमत
1893 के बाद हर साल गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता और 1947 तक इस गणेशोत्सव से अँग्रेजी हुकूमत डरती रही क्यू की इस गणेशोत्सव के दरम्यान अंग्रेजो के ख़िलाफ़ आवाज साल दर साल और मजबूत हुई।
अंग्रेजों की पूरी हुकूमत भी इस गणेशोत्सव से घबराने लगी. इतना ही नहीं इसके बारे में रोलेट समिति की रिपोर्ट में भी चिंता जताई गई.

इस रिपोर्ट में ज़िक्र किया गया था कि गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं, जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान किया जाता था.
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼नमन करता है रंजन उनको जिन्होंने धर्म और अध्यात्म से आगे बढ़ कर देशभक्ति को चुना और अपना सर्वस्व देश पर न्यौछावर कर दिया। 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼