
गणेश चतुर्थी मनाये जाने के पीछे का रहस्य…..
हम सभी गणेश चतुर्थी को हर वर्ष पुरे हर्षो उल्लास से मानते है , लेकिन कभी सोचा है की इसके पीछे भी कुछ रहस्यमई कहानियां है
भारत में लोग कोई भी नया काम शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करते हैl भगवान गणेश को विनायक और विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है l गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी कहा जाता है l इन्हें ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक भी माना जाता हैं l इसलिए आज हमने सोचा की क्यूँ न आप लोगों को गणेश चतुर्थी क्या है, इसे क्यों मनाया जाता है के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करेंगे. तो फिर चलिए शुरू करते हैं….
आमतौर पर गणेश चतुर्थी श्री गणेश जी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है l श्रधालुओं का मानना है कि भगवान गणेश जी खुशी और समृद्धि लाते हैं और उनकी सभी बाधाओं को दूर करते हैं, यही कारण है की गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए श्रधालु उनके अवतरण दिवस को गणेश चतुर्थी के रूप में मानते है l
इस त्यौहार के पीछे बहुत सी पौराणिक कथाएं जुड़ी है l उनमे से एक कथा ये भी है –
एक समय की बात है राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया।उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उसने गणेशजी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की। दुसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पाक गए थे लेकिन बच्चे का बल भी बांका नहीं हुआ l कुम्हार ने ये सारी घटना जाकर राजा को बताई l उसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी माँ को दरबार बुलाया तो माँ ने सभी तरह के कष्ट दूर करने वाली संकटी चतुर्थी के बारे में लोगो को बताया l इस घटना के बाद से सारी महिलाएं अपनी संतान और परिवार के लिए ये व्रत करने लगी l
वैसे तो भारत के प्रत्येक कोने में गणेश चतुर्थी मनाया जाता है परन्तु महाराष्ट्र में इसे काफी ताम-झाम और हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जाता है l इसके पीछे भी ऐतिहासिक कथाएं जुड़ी है l
पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया। कहा जाता हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थपना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी लेकिन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी को जो स्वरूप दिया उससे भगवन गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये। तिलक के प्रयास से पहले गणेश पूजा परिवार तक ही सीमित थी, पूजा को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने और समाज को संगठित करने तथा आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का उसे जरिया बनाया और उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
विनायक दामोदर सरकार और कवि गोविंद ने नासिक में ‘मित्रमेला’ नाम की एक संगठन बनाया था । इस संगठन का देश में देशभक्ति फैलाना था l जिसमे पोवाडे (मराठी लोक गीत ) आकर्षक ढंग से बोलकर लोगो को सुनाते थे । इस संगठन से पोवाडों ने पश्चिमी महाराष्ट्र में धूम मचा दी थी। कवि गोविंद को सुनने के लिए लोगों की भीड़ उमर परती थी। श्री गणेश की कथा के आधार पर वे लोगों में देशभक्ति का भाव जगाने में सफल होते थे। उनके बारे में वीर सावरकर ने लिखा है कि कवि गोविंद अपनी कविता की अमर छाप जनमानस पर छोड़ जाते थे। गणेशोत्सव का उपयोग आजादी की लड़ाई के लिए किए जाने की बात पूरे महाराष्ट्र में फैल गयी। गणेशोत्सव ने आजादी का नया आंदोलन छेड़ दिया था। अंग्रेज भी इससे घबरा गये थे। इस बारे में रोलेट समिति रपट में भी चिंता जतायी गयी थी। रपट में कहा गया था गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन विरोधी गीत गाती हैं व स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं। जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने और मराठों से शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता है। साथ ही अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए धार्मिक संघर्ष को जरूरी बताया जाता है। गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता थे – वीर सावकर, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, बैरिस्टर जयकर, रेंगलर परांजपे, पंडित मदन मोहन मालवीय , मौलिकचंद्र शर्मा, बैरिस्ट चक्रवर्ती, दादासाहेब खापर्डे औरसरोजनी नायडू।

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