होली का पर्व हिन्दू धर्म में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। जहां एक ओर फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन धुलेंडी होती है वहीं, एक रात पहले होलिका दहन किये जाने की परंपरा है।

Prahlad Aur Holika Ki Murti: होली का पर्व हिन्दू धर्म में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। जहां एक ओर फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन धुलेंडी होती है वहीं, एक रात पहले होलिका दहन किये जाने की परंपरा है। होलिका दहन जिस दिन होता है उस दिन न सिर्फ अग्नि प्रज्वलित करने के लिए गाय के गोबर के उपलों का इस्तेमाल किया जाता है बल्कि गाय के गोबर से ही होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाई जताई है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये अजन्ते हैं इसके पीछे का कारण।
गोबर से क्यों बनाते हैं प्रहलाद और होलिका की मूर्ति?
गोबर को हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है। यही कारण है कि किसी भी शुभ और धार्मिक कार्य में गोबर का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि हवन-अनुष्ठान आदि। इसके अलावा, होलिका दहन के लिए भी गोबर के उपलों का प्रयोग किया जाता है।
यह भी पढ़ें: Holi 2024: होली के दिन दही से बनी चीजें बनाने का क्या है महत्व?
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, गाय में सभी देवी-देवता का वास होता है और गाय के हर एक अंग में कोई न कोई देवी-देवता विराजित हैं। ठीक ऐसे ही गाय के गोबर और गौमूत्र में गंगा मैय्या का स्थान माना गया है। इसी कारण से गोबर की शुद्धता और भी मानी जाती है।

जब हम होलिका दहन के दिन अग्नि जलाते हैं तब गोबर से बनी होलिका की प्रतिमा भी जलने लगती है। इससे धुआं उठता है और गोबर का धुआं नकारात्मकता को काटता है। मन में पैदा होने वाले अशुभ विचारों को भी नष्ट कर देता है। साथ ही, बुरी नजर को भी उतारता है।
यह भी पढ़ें: HOLI 2024: रंगों से ही क्यों खेली जाती है होली?
साथ ही, ऐसा भी माना जाता है कि गोबर के जलने से जो धुआं पैदा होता है उससे वास्तु दोष और ग्रह दोष भी दूर होते हैं। इसी कारण से होलिका दहन की राख को घर ले जाने के लिए भी कहा जाता है ताकि वास्तु से जुड़ी कैसी भी परेशानी से निजात पाई जा सके।
उम्मीद है, आपको यह लेख पसंद आया हो इसे पढ़ने के लिए धन्यवाद, ऐसे ही आर्टिकल पढ़ते रहने के लिए जुड़े रहें Uprising Bihar के साथ। यह लेख पसंद आया हो तो इसे लाइक और शेयर जरूर करें। फेसबुक पर हम से जुरने के लिए यहाँ क्लिक करे |